जब हम छोटे नन्हे होते
माॅबाप हमको चलना सिखाते है
बैठाकर हमे पिठपर अपने
खुदको ही घोडा बनाते है।।
किसे पता है कल क्या होगा
अपने संसार में हमारे साये है
जमीमें बोये बीज बभूल के तो
मीठे फलको ही तरस जाते है।।
देखी है हमने जानवर की गैरत
हम इंसान ही जानवर बनते है
इस खुशहाली की होड में हम
आत्मा का दर्द समझ ना पाते है।।
माया ममता लुटाकर बने माॅबाप
कुछ न बचता उनके पास में है
प्रेम की प्यासी करूनाकी झारी है
फिर भी क्यों वृद्धाश्रमोमें भेजते है ।।
अजब है ये दुनिया का मेला
लपट झपटमें माॅबाप भुला दिया है
कैसा है ये जीवन स्वार्थसे भरा
इस अनमोल खजाने को दूर किया है।।
मीनाक्षी किलावत
8888029763
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